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मजबूरी बनती होली
होली तो उमंग – उत्सव और हर्षोल्लास का पर्व है. लेकिन समय के साथ होली क्या एक वर्ग की मजबूरी बन चुकी है. आज होली के दिन अपने शहर में कुछ घंटे बिता कर मुझे कुछ ऐसा ही लगा. मानो समय के साथ होली का भी वर्गीकरण हो चूका है. दूसरे त्योहारों की तरह होली भी जहाँ सम्पन्न और ताकतवर वर्ग के लिए खुशियाँ मनाने का एक बहाना है. वहीँ कमजोर और गरीब वर्ग की मजबूरी. मसलन सम्पन्न वर्ग होली की छुट्टी पर घर – परिवार या रिश्तेदारों के साथ अथवा घर में टीवी या कंप्यूटर के सामने बैठे रह कर या फिर ऑनलाइन बुकिंग के जरिये पर्यटन स्थलों की सैर को स्वतंत्र है. लेकिन जिसके सामने यह विकल्प मौजूद नहीं है , वह न चाह कर भी वाया नशा खुद को होली के हुडदग में शामिल कर मानो अपने ग़मों को भूलने की कोशिश करता नजर आया . होली का वास्तविक आनंद मनाते कम लोग ही दिखे
सम्पर्क _9434453934
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