प्राइवेट मरीजों के इलाज से इन्कार नहीं कर सकते रेलवे अस्पताल
प्राइवेट मरीजों के इलाज से इन्कार नहीं कर सकते रेलवे अस्पताल
हमारे देश में अस्पतालों व स्वास्थ्य सुविधाओं की काफी कमी है। पता नहीं देश में हर साल कितने ही लोग सिर्फ इलाज के अभाव में मर जाते हैं। ऐसे में आरटीआई अधिनियम के तहत हुआ ताजा खुलासा महत्वपूर्ण है , जिसके तहत अब यह स्पष्ट है कि देश के तमाम रेलवे अस्पताल प्राइवेट मरीजों के इलाज से इन्कार नहीं कर सकते हैं। आरटीआई अधिनियम के तहत पूछे गए दो सवालों के जवाब में विगत 13 सितंबर 2013 को रेलवे बोर्ड के स्वास्थ्य व परिवार कल्याण विभाग के जनसंपर्क व सूचना अधिकारी ने इंडियन रेलवे मेडिकल मैनुअल 2000 की उपधाराओं का उल्लेख करते हुए स्पष्ट रूप से स्वीकार किया है कि देश के तमाम रेलवे अस्पताल प्राइवेट मरीजों का इलाज करने से इन्कार नहीं कर सकते हैं। अस्पताल का 10 प्रतिशत बेड ऐसे मरीजों के लिए सुरक्षित है। हालांकि रेलवे प्राइवेट मरीजों का मुफ्त इलाज नहीं कर सकता। तय शुल्क अदा करके प्राइवेट मरीज अस्पताल की चिकित्सा सुविधाओं का लाभ उठा सकते हैं। हालांकि गौर करने वाली बात यह है कि चिकित्सा , बेड चार्ज व आपरेशन का शुल्क आदि की तय राशि की तुलना नर्सिंग होम में वसूले जाने वाले मोटी रकम से करें , तो यह काफी कम पड़ता है। देश के तमाम रेलवे अस्पताल अब तक प्राइवेट मरीजों के इलाज से कतराते थे। उन्हें यह कह कर टरका दिया जाता था कि यह तो रेलवे अस्पताल है। यहां सिर्फ रेलवे कर्मचारियों व उनके परिजनों का इलाज ही हो सकता है। कुछ ऐसे शहर जहां रेलवे के बड़े – बड़े अस्पताल हैं, और जहां के लोग नियमों की थोड़ी – बहुत जानकारी रखते हैं, वहां भी प्राइवेट मरीजों को अस्पताल के डाक्टर और अन्य स्टाफ नियमों की पेचीदिगियों में उलझा कर ऐसे हालात पैदा कर देते थे,. कि बेचारा मरीज वहां से खिसक लेने में ही अपनी भलाई समझता था। इसी के तहत आरटीआई अधिनियम के तहत यह सूचना मांगी गई थी कि भारत के रेलवे अस्पतालों में प्राइवेट मरीजों का इलाज नहीं हो सकता , क्या इस बारे में कोई सर्कुलर जारी हुआ है, और क्या प्राइवेट मरीज तय शुल्क अदा करके अस्पताल की सेवाएं ले सकते हैं। दोनों ही सवालों के रेलवे बोर्ड द्वारा दिए गए जवाब से स्पष्ट है कि रेलवे अस्पताल प्राइवेट मरीजों के इलाज से इन्कार नहीं कर सकते हैं।
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