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कलमकार कभी स्टार नहीं बन सकते…!!

tarkeshkumarojha
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कलमकार कभी स्टार नहीं बन सकते…!!

तिल कभी ताल नहीं बन सकता। उसी तरह कलमकार व शब्दकर्मी कभी भी राजनेता , सिने सितारे या खिलाड़ियों की तरह लोकप्रिय नहीं हो सकते। पश्चिम बंगाल के बहुचर्चित शारदा घोटाले में हवालात पहुंच चुके तृणमूल कांग्रेस सांसद व पेशे से पत्रकार कुणाल घोष शायद यह हकीकत समझने में भूल कर बैठे। राजनेताओं का वरदहस्त पाकर उनका मनोबल इतना बढ़ा कि उन्हें लगा कि वे जल्द ही स्टार जैसे लोकप्रिय हो जाएंगे। लेकिन इस चक्कर में वे इस कदर औंधे मुंह गिरे कि आज उनकी पार्टी के लोग ही उनके खिलाफ जम कर अपनी भड़ास निकाल रहे हैं। दरअसल सांसद – पत्रकार  कुणाल घोष ने अपना करियर कोलकाता से प्रकाशित एक बंगला दैनिक से शुरू किया था। राजनीति बीट से जुड़े होने के चलते उनका राजनेताओं से अच्छा संबंध था। 2006-2007 में पश्चिम बंगाल की राजनीति में नंदीग्राम से लेकर माओवादी समस्या से जुड़ी घटनाओं को लेकर काफी कुछ ऐसा हुआ, जिसने प्रदेश में परिवर्तन की बयार बहा दी। तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो ममता बनर्जी ने समय की मांग को बखूबी समझा और मीडिया की ताकत का इस्तेमाल अपने हित में किया। वहीं मीडिया को पूंजीपतियों का हथियार मानने वाले वामपंथी अपनी जिद पर अड़े रहे, और मीडिया से दूरी बनाते हुए कैडरों पर ही भरोसा करते रहे। इस वक्त का कुणाल घोष ने जम कर इस्तेमाल किया, और शारदा समूह के मालिक सुदीप्त सेन को मीडिया व्यवसाय में उतरने के लिए राजी कर लिया। फिर क्या था, एक के बाद एक कुल 13 मीडिया संस्थान के सीईओ बन गए कुणाल घोष। उन्हें लगा कि इस परिस्थिति का लाभ उठा कर वे कम से कम पश्चिम बंगाल में स्टार बन कर रहेंगे।2007 में नंदीग्राम में हुई हिंसा पर टिप्पणी करते हुए घोष इतने भावावेश में आ गए, कि उन्होंने तत्कालीन मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य के खिलाफ रोष जाहिर करते हुए यहां तक कह दिया कि उन्हें लगता है कि वे उनके गाल पर एक तमाचा जड़ दें।2011 के विधानसभा चुनाव के बाद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने राज्य के जिन पांच पत्रकारों को राज्यसभा में भेजा, उनमें कुणाल घोष भी शामिल थे। इस हैसियत से उन्हें ममता बनर्जी के साथ परछाई की तरह घूमने का अवसर भी मिलता रहा।   समूह के चैनलों में किसी न किसी बहाने कुणाल घोष अपना चेहरा बार – बार दिखाते। एक सांसद – संवादिक( पत्रकार) की हैसियत से अपने ही चैनल पर अपना इंटरव्यू देते। शारदा समूह के मीडिया हाउस के होर्डिंग्स में उनके बड़े – बड़े कटआउट होते। चैनलों पर क्विज व अन्य मुद्दों पर बहस के दौरान भी कुणाल सक्रिय नजर आते। लेकिन 2013 के मार्च महीने में हजारों करोड़ के शारदा घोटाले का खुलासा होने के बाद से ही कुणाल नायक से खलनायक बन गए। आज वे हवालात में है। दिलचस्प यह कि कभी उनके आलोचक रहे वामपंथी व कांग्रेसियों की सहानुभूति उन्हें मिल रही है, लेकिन खुद उनकी पार्टी तृणमूल कांग्रेस उन्हें फूटी आंखों नहीं सुहा रहे। कह सकते हैं कि शब्दकर्मी से शब्दसितारा बनने की चाहत के चलते कुणाल घोष का यह हश्र हुआ।

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