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सत्ता गई तो कम्युनिस्टों को याद आ रहे भगवान …!!

tarkeshkumarojha
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सत्ता गई तो कम्युनिस्टों को याद आ रहे भगवान ...!!

आदमी का आस्तिक या नास्तिक होना  अवधारणा से ज्यादा मानसिक दशा पर निर्भर करता है। कई बार परिस्थितियों के चलते नास्तिक आदमी भी हो आस्तिक होने लगता है, वहीं व्यवहार में इसका उलटा भी देखा जाता है। मैं अब स्वर्ग सिधार चुके  एक कट्टर कम्युनिस्ट नेता को जानता हूं, जिन्हें जीवन संध्या में लगातार प्रतिकूल परिस्थितयों का सामना करना पड़ा था। इस स्थिति में पहले  उनकी धर्मपत्नी का झुकाव अध्यात्म की ओर हुआ। नजदीकियों की मानें तो जीवन के अंतिम दिनों में खुद कामरेड भी ईश्वर – भगवान व भाग्य आदि की चर्चा करने लगे थे। सुना है रिकार्ड समय तक मुख्यमंत्री रहने का कीर्तिमान बना चुके पश्चिम बंगाल के भूतपूर्व मुख्यमंत्री  स्व. ज्योति बसु आजीवन कम्युनिस्ट और नास्तिक रहे। लेकिन उनके पिताजी की धर्म – कर्म में गहरी रुचि रही। बताते हैं कि ज्योति बसु के पिता एक संत के अनुयायी रहे, और उनसे उन्होंने विधिवत रूप से गुरुमंत्र भी लिया था। संयोग देखिए कि अपने पिता की मृत्यु के बाद उनकी धार्मिक रीति से अंतिम संस्कार न करने वाले ज्योति बसु जब खुद संसार से विदा हुए, तो उनके एकमात्र पुत्र ने परंपरागत तरीके से उनका श्राद्ध आदि किया। इसी तरह पश्चिम बंगाल में लगातार 34 साल की सत्ता छीन जाने के बाद अब कई कम्युनिस्ट भागवतगीता आदि का उद्दरण देकर लोगों को हैरत में डाल रहे हैं। इसकी बानगी साल के पहले दिन यानी 1 जनवरी को कोलकाता में देखने को मिली। मौका कभी अपने क्षेत्र के मुकुटहीन सम्राट कहलाने वाले वरिष्ठ माकपा नेता व पूर्व सांसद के विवादास्पद कालेज के हस्तांतरण का था। नंदीग्राम हिंसा कांड के बाद से  लगातार विकट प्रतिकूल परिस्थितयों का सामना कर रहे वह कामरेड समझौता पत्र पर हस्ताक्षर करने के लिए मौजूद थे।  प्रत्यक्षदर्शियों की मानें तो इस मौके पर कामरेड ने न सिर्फ भागवतगीता  के कई श्लोक पढ़े, बल्कि उनकी बंगला में व्याख्या करते हुए कहा कि भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है कि जब – जब पृथ्वी में धर्म की हानि होती है, वे शरीर धारण कर अवतार लेते हैं। एक कामरेड के मुंह से गीता का श्लोक और व्याख्या सुन कर वहां मौजूद लोग ही नहीं उनकी सहधर्मिणी पत्नी भी हैरान रह गई। जो स्वयं एक बड़ी कम्युनिस्ट नेत्री है। कहना है कि नास्तिक हो या आस्तिक । सभी को यह ख्याल रखना चाहिए कि  किसी की व्यक्तिगत धारणा एक पक्ष से जुड़ी हो सकती है। लेकिन आस्तिकता या नास्तिकता का ऐसा अनावश्यक दिखावा नहीं करना चाहिए कि भविष्य में विपरीत परिस्थितयों में बिल्कुल विपरीत आचरण करना पड़े। इनलाइन चित्र 1

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