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यह विचित्र संयोग रहा कि सात साल बाद विगत मार्च में जब देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश में जाना हुआ, तब राज्य में विधानसभा चुनाव अपने अंतिम चरण में थे। इस बार जुलाई के प्रथम दिनों में ही फिर प्रदेश जाने का संयोग बना, तब देश के दूसरे प्रदेशों की तरह ही यूपी में भी राष्ट्रपति चुनाव की खासी गहमागहमी चल रही थी। निश्चय ही किसी भी सरकार के कामकाज का आकलन दिनों के आधार पर नहीं किया जा सकता। लेकिन मन में असीम जिज्ञासा यह जानने की रही कि देखें तेज तर्रार मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के राज में उत्तर प्रदेश कितना बदला है।
नितांत निजी प्रयोजन से पश्चिम बंगाल से उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ के लिए यात्रा शुरू करते ही रेल रोको आंदोलन के चलते ट्रेन के पूरे छह घंटे विलंब से चलने की पीड़ा दूसरे सैकड़ों यात्रियों के साथ मुझे भी झेलनी पड़ी। प्रतापगढ़ स्टेशन से बाहर निकलते ही मेरी जिज्ञासा जोर मारने लगी। सड़कों की स्थिति परिवर्तन का अहसास करा रही थी। अपने गांव जाते समय कुछ वैकल्पिक मार्गों का पता चला, जिससे ग्रामांचलों की दूरियां काफी सीमित हो जाने से लोग राहत की सांस ले रहे थे।
बातचीत में कुछ पुलों का जिक्र भी आया, जिनकी वजह से ग्रामांचलों में आवागमन सुविधाजनक हो गया था। सबसे बड़ा मसला विधि व्यवस्था का था, लेकिन इस सवाल पर हर कोई मुस्कान के साथ चुप्पी साध लेता। इसके स्थान पर कुछ कद्दावर भाजपा नेताओं की आपसी कलह की चर्चा शुरू हो जाती, जो मेरे जिले से राज्य सरकार में मंत्री थे। नेताओं के आपसी टकराव की चर्चा लोग चटखारे लेकर कर रहे थे। बिजली के सवाल पर हर किसी से यही सुनने को मिला कि ग्रामांचलों में भी स्थिति कुछ सुधरी है। अनियमित ही सही, लेकिन निर्धारित 12 घंटे के बजाय अब लोगों को अधिक बिजली मिल रही है।
दूसरे दिन बस्ती जाने के क्रम में मुझे इस बात से काफी खुशी हुई कि मेरे गंतव्य तक जाने वाला राजमार्ग अमेठी, सुल्तानपुर, फैजाबाद व अयोध्या जैसे शहरों से होकर गुजरेगा, राजनीतिक–ऐतिहासिक घटनाओं के चलते मैं जिनकी चर्चा अरसे से सुनता आ रहा हूं। अपने गांव बेलखरनाथ से गंतव्य के लिए निकलते ही गाड़ी दीवानगंज बाजार पहुंची, तो बाजार में बेहिसाब जलभराव और गंदगी के बीच सड़क के बिखरे अस्थिपंजर ने अनायास ही मेरे मुंह से सवाल उछाल दिया कि परिवर्तन के बावजूद यह क्यों…। जवाब मिला … यही यहां का चलन है।
मेरे यह पूछने पर कि यहां कोई नगरपालिका या पंचायत प्रतिनिधि तो होंगे, क्या उनके संज्ञान में यह सब नहीं है। फीकी मुस्कान के साथ जवाब मिला, जब जिला मुख्यालयों में ऐसी ही हालत है तो गांव–जवार की कौन पूछे। गाड़ी आगे बढ़ी औऱ अमेठी के रास्ते गोरखपुर जाने वाले राजमार्ग की ओर बढ़ने लगी। बेखटके चल रही गाड़ी ने अहसास करा दिया कि उत्तर प्रदेश में भी प्रमुख सड़कों की हालत में काफी सुधार आ गया है। हालांकि इस आधार पर कतई इस निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा जा सकता था कि गांव–कस्बों की सड़कें सचमुच गड्ढा मुक्त हो पाई है या नहीं।
अनेक गांव–कस्बों व जिला मुख्यालयों से होते हुए हम अपने गंतव्य की ओर बढ़ रहे थे। हालांकि मेरे अंदर सबसे ज्यादा कौतूहल परिवर्तन की सरकार में पुलिस तत्परता को अनुभव करना था। क्योंकि कानून–व्यवस्था में सुधार के हर सवाल पर स्थानीय निवासी फीकी मुस्कान के साथ चुप्पी साध लेते थे। अयोध्या से आगे बढ़ते ही बस्ती जिले के प्रवेश द्वार पर एक हादसे के चलते राजमार्ग पर बेहिसाब जाम लग गया था। ट्रक ने सेना के एंबुलेंस को टक्कर मार दी थी। हादसे में किसी की मौत तो नहीं हुई थी, लेकिन हादसे के चलते वाहनों का आगे बढ़ पाना मुश्किल हो रहा था।
बढ़ती उमस के बीच इस परिस्थिति ने मेरी बेचैनी बढ़ानी शुरू कर दी। तभी लगा शायद इसी बहाने पुलिसिया तत्परता से दो–चार होने का मौका मिल जाए। अपेक्षा के अनुरूप ही थोड़ी देर में सायरन बजाते पुलिस के दो वाहन मौके की ओर जाते दिखाई दिए। कुछ देर में जाम खुल जाने से मैने राहत की सांस ली। वापसी यात्रा में निकट संबंधी के यहां भुपियामऊ गया, तो वहां निर्माणाधीन विशाल पुल ने मुझे फिर कभी गांव से नजर आने वाले इस इलाके में परिवर्तन का आभास कराया। भले ही इसकी नींव बहुत पहले रखी गई हो।
वापसी की ट्रेन हमें इलाहाबाद से पकड़नी थी। देर शाम करीब साढ़े आठ बजे हमें प्रतापगढ़ से मनवर संगम एक्सप्रेस मिली। रवाना होते ही ट्रेन की बढ़िया स्पीड ने इस रूट पर कच्छप गति से चलने वाली ट्रेनों की मेरी पुरानी अवधारणा को गलत साबित कर दिया, लेकिन जल्दी ही ट्रेन पुरानी स्थिति में लौट आई और जगह–जगह रुकने लगी। फाफामऊ स्टेशन पर यह ट्रेन देर तक रुकी रही। जिसके चलते असंख्य यात्रियों को रेलवे लाइन पार करने का जोखिम उठाते हुए पहले जाने वाली दूसरी ट्रेनों में चढ़ना पड़ा।
इलाहाबाद से हमें आनंदविहार–सांतरागाछी साप्ताहिक सुपर फास्ट ट्रेन पकड़नी थी, लेकिन यह ट्रेन धीरे–धीरे पांच घंटे देर हो गई। इससे यात्रा की शुरुआत की तरह ही मेरी वापसी यात्रा का सगुन भी बिगड़ चुका था। ट्रेन के आने के बाबत रेल महकमे की भारी लापरवाही झेलता हुआ मैं परिवार सहित तड़के इस ट्रेन में सवार होकर अपने शहर को लौट सका।
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